प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत क्या हैं ?

यदि आप भी प्राचीन इतिहास को अच्छी तरीके से समझना चाहते हैं शेड्यल से, तो सबसे पहले आपको ये जानना जरूरी है कि  प्राचीन इतिहास के स्रोत क्या क्या है । और यदि आप इस पोस्ट को पूरे पढ़ लेते हैं तो आपके मन में यह सभी सवाल प्राचीन इतिहास के स्रोत क्या है ,प्राचीन इतिहास के साहित्यिक स्रोत क्या है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं।

प्राचीन इतिहास के स्रोत क्या है

प्राचीन इतिहास के स्रोत क्या क्या है ।

प्राचीन इतिहास को जानने  और समझने के लिए सभी प्रकार के स्रोतों को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है 

          1) साहित्यिक स्रोत    2) पुरातात्विक स्रोत–  


साहित्यिक स्रोत:–

साहित्यिक स्रोत क्या है यदि हम इसके ऊपर चर्चा करें तो हम इसे आसान शब्दों में कह सकते हैं महामुनियों , महापुरुषों  संतों  द्वारा लिखे गए ग्रंथों को हम साहित्यिक स्रोत के नाम से जानते हैं  जैसे :– वेद,वेदांग,महाभारत etc. 

साहित्यिक स्रोत को भी दो भागों में बांटा जा सकता है                  

(a) धार्मिक साहित्य (religious literature)  (b). धर्मेत्तर साहित्य (non -religious literature)

(a) धार्मिक साहित्य:–

धार्मिक साहित्य में हिन्दू धर्म से संबंधित वेद, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण ग्रंथ, स्मृति, पुराण और महाकाव्य, बौद्ध धर्म से संबंधित जातक, त्रिपिटक, पाली ग्रंथ व संस्कृत ग्रंथ जैन धर्म से संबंधित विभिन्न प्राकृत भाषा में लिखे गये ग्रंथ शामिल है जिन्हें ‘आगम’ कहा जाता है।


I). वेद :–

इसे भारत का सबसे प्राचीन साहित्यिक स्रोत माना जाता है इसका जन्म विद् शब्द से हुआ है जिसका अर्थ ज्ञान होता है  इसकी संख्या चार है । इसकी रचना ईश्वर के द्वारा किया गया है इसलिए इसे अपौरूषैय कहा जाता है।

           गुप्त काल में महर्षि द्वैपायन और व्यास ने वेद का संकलन किया । प्रारंभ में इसकी संख्या 3 थी इसलिए इसे त्रयी भी कहा गया है। और अथर्ववेद को बाद में सम्मिलित किया गया इसलिए इसे वेदत्रयी में शामिल नहीं करते हैं  १ऋग्वेद  २  सामवेद     ३यजुर्वेद   और ४अथर्ववेद 


१). ऋग्वेद:–

ऋग्वेद दुनिया की सबसे प्रथम पुस्तक और प्रथम  धर्म ग्रंथ है इसमें 10 मंडल ,1028 सूक्त(पंक्ति) और 10580 ऋचाएं(मंत्र) हैं। रिचाओं की अधिकता के कारण ही इसे ऋग्वेद कहा गया है। यह सबसे प्राचीन एवं सबसे बड़ा वेद है । इस वेद के ऋचाओं का गायन करने वाले ऋषि को “होतृ” कहा जाता है। ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में प्रसिद्ध “गायत्री मंत्र” का उल्लेख है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल की हस्तलिखित ऋचाओं को “खिल” कहा जाता है। 

२).सामवेद:–इस वेद में 1875 मंत्र  हैं किंतु इस वेद के मूल मंत्रों की संख्या 99 है और जो बाकी मंत्र हैं उसे ऋग्वेद से ग्रहण किया गया है। 

. सामवेद में संगीत स्वर सा, रे, ग, मा, पा, धा और नि का भी चर्चा किया गया है इसलिए इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है। सामवेद का वेद गंधर्व वेद है ।

३). यजुर्वेद:–इस मंत्रों की संख्या 1990 और इसमें युद् धकर्मकांड की भी चर्चा है ।

४). अथर्ववेद–इस वेद की रचना उत्तर वैदिक काल में हुई है इसलिए इसे सबसे  नवीनतम वेद भी कहा जाता है इसमें मंत्रों की संख्या 6000 है। और ज्यादा दोनों की शुरुआत इसी वेद से हुई है।

II). वेदांग:- वेदों को सरल रूप में समझने के लिए वेदांग की रचना की गई इसे आसानी से पढ़ कर समझा जा सकता है । यदि कोई व्यक्ति वेद को पढ़ना चाहता है तो सबसे पहले उसे  वेदांगों को पढ़ना पड़ेगा । वेदागौं  की संख्या 6 है–व्याकरण, ज्योतिष, निरुक्त, छंद , शिक्षा और कल्प ।


III).  पुराण:–इसे वेदों का वेद या पंचम वेद कहा जाता है इसके रचनाकार महर्षि लोमहर्षक तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा हैं। इनकी संख्या 18 है। पुराणों में सबसे प्राचीनतम और प्रमाणिक पुराण मत्स्यपुराण को माना जाता है।

IV). उपनिषद:–इसका अर्थ होता है गुरु के समीप बैठकर ज्ञान को प्राप्त करना। इन्हें वेदांत भी कहा जाता है, इसकी कुल संख्या 108 है । भारत के राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते मुंडक उपनिषद से लिया गया है।

V). महाकाव्य:– महाकाव्य की संख्या 2 है –महाभारत और  रामायण


महाभारत –इसका प्रारंभिक नाम जय संहिता था और इसकी रचना वेदव्यास ने की है प्रारंभ में इस में श्लोकों की संख्या 8800 थे । और वर्तमान में श्लोकों की संख्या एक लाख है। महाभारत के खंडों को पर्व कहा जाता है इनमें टोटल 18 पर्व हैं। और इन सभी पर्वों में से सबसे महत्वपूर्ण पर्व भीष्म–पर्व है। जिसमें अर्जुन तथा कृष्ण के वार्तालाप की चर्चा है। भीष्म–पर्व को भगवत गीता या गिता कहा जाता है।


रामायणमहर्षि बाल्मीकि के द्वारा रचित यह रामायण बहुत ही पॉपुलर महाकाव्य है। शुरुआती समय में इसमें 12000 श्लोक थे और अभी 24000 श्लोक हैं। जिसे गुप्त काल में पूरा किया गया था। रामायण में कुल सात कांड है, इन सात काण्डो के नाम – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युदध्काण्ड) तथा उत्तरकाण्ड है। इनमें से सबसे बड़ा अध्याय बालकाण्ड तथा सबसे छोटा किष्किन्धाकाण्ड है।




बौद्ध साहित्य :–यह पाली भाषा में लिखा गया है।


जैन साहित्य:–यह प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं इन्हें आगम भी कहते हैं।





गैर–साहित्य (Non-Religious literature):–वह साहित्य जिसका संबंध किसी भी धर्म से नहीं होगा गैर–धार्मिक साहित्य कहलाता है जैसे कि अर्थशास्त्र जो कि कौटिल्य के द्वारा लिखा गया है ।और राजतरंगनी, कीर्ति कौमुदी, मुद्राराक्षस etc.


 2).पुरातात्विक स्रोत क्या है और कितने प्रकार के होते है ? 

प्राचीन  जमाने में जब कभी कुछ बनाया जाता और  उसका उपयोग किया जाता था उसी का अवसेस आज मिलता है तो उसे पुरातत्व पदार्थ कहते है और इसी पुरातत्व पदार्थ का अध्ययन किया जाता है जिससे प्राचीन इतिहास के बारे में जानने का मौका मिलता है ? जैसे :- A)सिक्का    B)अभिलेख
 

A). सिक्का (coin):-

  Note}:–    {सिक्के को आसानी से समझने के लिए हमें उसको इस तरीके से पढ़ना चाहिए कि हमें याद रहे तो चलिए उसे design ही उसी प्रकार से करते हैं । यहां पर आपको काल के हिसाब से डिजाइन किया हुआ मिलेगा जिससे आपको याद आसानी से रह सकता है।}                                       

1)सिंधु सभ्यता:– टेराकोटा– यह मिट्टी के बने होते थे जो सिंधु सभ्यता के काल में चलता था। इस पर कोई डिजाइन नहीं होती थी।

2) मौर्य काल :– इस काल में तीन प्रकार के सिक्के  चलाए गए आहत सिक्के पंचमार्क सिक्के पर्ण सीखें

a) आहत :–इसका पर मोहर बनना स्टार्ट हुआ था।

b) पंचमार्क:- इसमें पांच प्रकार के धातुओं को मिला करके उसको एक अच्छी आकृति दी जाती थी।

ç)पर्ण:–यह सिक्के मिश्रित चांदी के बने होते थे।

3) हिंदू यूनानी:–इन्होंनेे सर्वप्रथम सोने की सिक्के चलाए थे  जो शुद्ध नहीं हुआ करते थे।

4) कुषाण काल:– इसमें सर्वप्रथम स्कंद गुप्त ने  शुद्ध सोने के सिक्कों को चलाया गया था।

5) गुप्त काल :–इस काल में सर्वप्रथम स्कंदगुप्त ने अशुद्ध सोने को चलाया था जिसकी मात्रा बहुत अधिक थी और चंद्रगुप्त द्वितीय ने  शुद्ध चांदी के सिक्के को चलाया था । इस काल में दो प्रकार के और सिखों को चलाया गया था जिसका नाम था मयूर और कउड़ी 

6) सातवाहन काल :–इस काल में शीशे के सिक्के को चलाया गया था।

7) मुगल काल:– इस काल में  हुमायूं ने चमड़े के सिक्के को चलाया था। 

8)  शेरशाह शूरी:–इन्होंने तीन प्रकार के सिक्कों को चलाया था जिसका नाम था दाम(तांबा), रुपया(चांदी) और अशर्फी(सोना) । दाम गरीब लोगों के लिए बनाया गया था, रुपया मध्यमवर्ग वाले लोगों के लिए, और अशर्फी उच्च वर्ग वाले लोगों के लिए बनाया गया था।


B)अभिलेख:– कोई खास जानकारी को एक लंबे समय तक बरकरार रखने के लिए किसी पत्थर,स्तंभ, दीवाल धातु के परत etc.पर लिखे गए लेख को अभिलेख कहते हैं।स्तंभलेख, गुफाअभिलेख, शिलालेख, भित्तिअभिलेख , गुहालेख etc.

1 स्तंभलेख:–किसी स्थान पर लिखे गए लेख को स्तंभ लेख कहते हैं जैसे प्रयागस्तंभ लेख जिसे गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने बनवाया है।

2 गुफाअभिलेख:–किसी गुफा के अंदर लिखे गए सूचना को  गुफा अभिलेख कहते हैं जैसे हाथीगुंफा अभिलेख जिसे कलिंग राजा खारवेल के द्वारा बनवाया गया है।

4 शिलालेख:–किसी पत्थर को खोदकर लिखे गए लेख को शिलालेख कहते हैं।

आज आपने इस आर्टिकल में प्राचीन इतिहास के स्रोत क्या क्या है और प्राचीन इतिहास के स्रोत क्या है इसके बारे में अच्छे तरीके से समझ गए होंगे और यदि आपके मन में और सवाल रह गया हो तो कॉमेंट में जरूर लिखे हमें आपकी मदद करने में बहुत अच्छा लगता है ? 


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