शेर शाह सूरी का इतिहास | Sher Shah Suri History In Hindi

 हेल्लो दोस्तो स्वागत है आप सभी का एक और धमाकेदार आर्टिकल में दोस्त्तो जब भी हम ईतिहास के  कुछ टोपिक्स जो  इस अर्टिकल में हम  शेर शाह शुरी के बारे में बात करेंगे तो आप इस आर्टिकल को पुरा जरुर  पढें । 

शेर शाह सूरी का इतिहास | Sher Shah Suri History In Hindi
 Sher Shah Suri History In Hindi

शेर शाह सूरी का इतिहास क्या है ? 

शेर शाह शुरी history चार्ट  

नाम                           शेर शाह सूरी              

जन्म                1885-1886 हरियाणा या (1472 रोहतास जिले के सासाराम में) इतिहासकार का अलग-अलग मत 

पिता                     हसन खान सूरी                

पुत्र                       इस्लाम  शाह सूरी             

पत्नि                      रानी  शाह                        



शेर शाह शुरी का प्रारंभिक स्तिथि कैसी थी ? 

शेर शाह सूरी  अर्थात फरीद खान के पिता क नाम हसन खान था जो शुरूआती समय मे लोदी वंश के एक कार्यकारी थे और बाद मे यह बिहार के नुमानी  वंश के एक अच्छे कार्यकरी  बने जिस वजह से एक दिन फरीद अपने पिता के साथ नुमानी वंश के एक फेमस शासक बहार अली के दरबार चले गये . बहार अली फरीद से मिलकर बहुत खुश हुए तथा बाद में इन्होने ही फरीद  खान को शेर शाह की उपाधी दिया . और बहार अली ने ही हसन को कहकर फरीद को उसकी पढाई के लिये उस समय के महशूर शिक्शा केंद्र उत्तरप्रदेश के जौनपुर भेजा तथा यहाँ की पढाई खत्म होने के बाद मे इसे अगली पढाई के लिये हिसार भेज दिया गया . 
                     शेर शाह सूरी के समय जौनपुर भारत के शिक्षा केंद्रों मे से सबसे महत्वपूर्ण था ,उस समय जौनपुर को भारत का शिराज( सर का ताज )  कहा जाता था । शेर शाह सूरी ने जो सिक्का चलाया था उसे असरफी या मोहरा कहा जाता था । और शेर शाह ने जो चांदी का सिक्का चलाया था उसे रुपया कहा गया । जो अभी तक भारत मे चलता आ रहा है । तथा इसके तांबे के सिक्के को दाम कहा जाता था । इसने दिल्ली में किला-ए-कहुना  नामक मस्जिद  का निर्माण करवाया । इसे पुराना किला के नाम से भी जानते है ।  कुछ इतिहासकार का कहना है की यदि कोई औरत आधी रात सोना लेकर कहीं जा रही है तो कोई भी मर्द उस स्त्री को छू भी नहीं सकती थी मतलब किसी का हिम्मत ही नहीं होता था  । 

फरीद से शेर शाह सूरी का सफर 

फरीद जब अपने पिता के साथ बहार से मिले तो  सबसे पहले बहार  ने इसे एक छोटा पोस्ट दिया तथा यह प्रक्रिया लगातार कुछ दिन तक चलता है और एक दिन बाहार अली ने फरीद की बुधिमता को देखकर उसे अपने पुत्र जलल का शिक्श्क बना देता है .   एक दिन  फरीद खान शिकार करने के लिये जंगल जाता है और वहाँ से एक शेर को अकेले मार लाता है जिस कारण बहार खुश होकर फारीद को " शेर खान"   उपाधी देता है . (जो आगे चलकर  शेर शाह सूरी के नाम से विख्यात हुआ ) तथा उसके साथ ही फरीद को अपने दरवार का सबसे बढा अधिकारी बना दीया . 
                          मामला यहीं खत्म नहीं हुआ बल्कि दरवार मे मामला और बढ गया . सभी दरवारी लोग  शेर शाह कि बुरायी करने लगे . और शेर शाह सूरी को जान से खत्म  करने की कोसिस करने लगे । 

शूर वंश संस्थापक कौन है ? 

शेर शाह सूरी ने जिस वंश की स्थापना किया था उसी को शूर वंश के नाम से जानते है ।  शेर खान ने नुमानी वंश के नाम को ही बदल कर शूर वंश कर दिया । इस वंश को ही द्वितीय अफ़गान वंश भी कहा जाता  है । शूर वंश की जानकारी अब्बास खान सेखानी के रचना तौफा‌‌-ए -अकबरशाही  से मिलती है । 


शेर शाह सूरी  vs   हुमायूं  

1538 ईस्वी मे जब हुमायूँ बंगाल अभियान से वापस आ रहा था तभी  चौसा नामक स्थान पर शेर शाह सूरी ने हुमायूं पर 26 जुन 1539 को आक्रमण कर दिया और इस युद्ध को शेर खान ने जीत भी लिया  तथा 1540 ईस्वी के युद्ध मे हुमायूँ को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया । तथा 1540 ईस्वी मे ही शेर खान दिल्ली का शासक बना । 

चौसा  का  युद्ध :- यह युद्ध शेर साह शुरी  तथा हुमायूँ के बीच लड़ा गया . यह युद्ध 26 जुन 1539 को चौसा स्थान पर हुआ था .यह स्थान फिलहाल बिहार के बक्सर जिला में  स्थित है . इस युद्ध में  हुमायूँ की  बूरी तरह से परजाय हुई और शेर शाह सुरी की जीत हुई . और इस युद्ध में हुमायूँ  न केवल पराजय हुई थी बल्कि इसकी बुराई भी हुई थी क्योंकि यह युद्ध का मैदान छौड़कर भाग गया था .


Note:-
1).किस वंश को द्वितीय अफगान वंश कहा गया ? 
 Ans:- शूर वंश को 
2)हुमायूँ की मृत्यु कहाँ हुआ था ?
 Ans:-हुमायूँ की मृत्यु  कालिंजर में  हुआ था । 

IMPORTANT FOR EXAMS 

  1. शेर शाह सूरी ने ही पटलीपुत्र का नाम बदलकर पटना किया । इसने G.T.( Grand Trank ) रोड बनवाया । 
  2. इसने किसानों से संबंध स्थापित करने के लिये रैयतवाड़ी  व्यवस्था चालू किया उस समय शेर खान कीसनों को रैयत कहकर पुकारते थे । 
  3. कर की चोरी न हो इसलिए इन्होंने भूमि माप कारवाई , इस व्यवस्था को जाब्ती व्य्वस्था कहा गया ।  
  4.   इसने दिल्ली में किला-ए-कहुना  नामक मस्जिद  का निर्माण करवाया । 

दोस्तों आशा है कि आप शेर शाह सूरी के इतिहास को पढ़कर शेर शाह के बारे में  जानकारी प्राप्त किए होंगे और यदि आपके पास कोई सवाल है तो कॉमेंट मे जरूर पूछें । 

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